Saturday, August 24, 2013

मेरी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है

मेरी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है
करता हूँ प्यार बहुत में उनसे पर उन्हें शक आज भी है
मेरी जिन्दगी में आने का वादा किया था उसने नहीं आये वो
पर मेरी जिन्दगी को उनका इंतजार आज भी है
पहन कर वो पायल चलती थी वो इस कदर
उनकी पायल की वो छनक मेरे कानो में आज भी है
कुछ सपने कुछ आरजू थी मेरी
माँ की आँखों में उन पथराई हुई आँखों को में उम्मीद की एक किरण आज भी है
दिल तो मेरा बहुत करता है रोने को पर डरता हूँ कहीं
आंसुओ में ना धुल जाये उनकी वो तस्वीर जो मेरी आँखों में आज भी है
वो चली गई मुझे कुछ शिकवा तो उनसे आज भी है
कुछ भी कहो यारो मेरे दिल में आज भी उसका ही राज है
sanjay kumar meel

रक्‍तदान


रक्‍तदान
खून चढाने की जरूरत:-
जीवन बचाने के लिए खून चढाने की जरूरत पडती है। दुर्घटना,  रक्‍तस्‍त्राव,  प्रसवकाल और ऑपरेशन आदि अवसरों में शामिल है,  जिनके कारण अत्‍यधिक खून बह सकता है और इस अवसर पर उन लोगों को खून की आवश्‍यकता पडती है। थेलेसिमिया,  ल्‍यूकिमिया,  हीमोफिलिया जैसे अनेंक रोगों से पीडित व्‍यक्तियों के शरीर को भी बार-बार रक्‍त की आवश्‍यकता रहती है अन्‍यथा उनका जीवन खतरे में रहता है। जिसके कारण उनको खून चढाना अनिवार्य हो जाता है।
रक्‍तदान की आवश्‍यकता:-
इस जीवनदायी रक्‍त को एकत्रित करने का एकमात्र् उपाय है रक्‍तदान। स्‍वस्‍थ लोगों द्वारा किये गये रक्‍तदान का उपयोग जरूरतमंद लोगों को खून चढानें के लिये किया जाता है। अनेक कारणों से जैसे उन्‍नत सर्जरी के बढतें मामलों तथा फैलती जा रही जनसंख्‍या में बढती जा रही बीमारियों आदि से खून चढाने की जरूरत में कई गुना वृद्वि हुई है। लेकिन रक्‍तदाताओं की कमी वैसी ही बनी हुई है। लोगों की यह धारणा है कि रक्‍तदान से कमजोरी व नपूसंकता आती है, पूरी तरह बेबूनियाद है।  आजकल चिकित्‍सा क्षेत्र में कॅम्‍पोनेन्‍ट थैरेपी विकसित हो रही है,  इसके अन्‍तर्गत रक्‍त की इकाई से रक्‍त के विभिन्‍न घटकों को पृथक कर जिस रोगी को जिस रक्‍त की आवश्‍यकता है दिया जा सकता है इस प्रकार रक्‍त की एक इकाई कई मरीजों के उयोग में आ सकती है।
रक्‍त कौन दे सकता है?
ऐसा प्रत्‍येक पुरूष अथवा महिला:-
  1. जिसकी आयु 18 से 65 वर्ष के बीच हो।
  2. जिसका वजन (100 पौंड) 48 किलों से अधिक हो।
  3. जो क्षय रोग, रतिरोग, पीलिया, मलेरिया, मधुमेंह, एड्स आदि बीमारियों से पीडित नहीं हो।
  4. जिसने पिछले तीन माह से रक्‍तदान नहीं किया हो।
  5. रक्‍तदाता ने शराब अथवा कोई नशीलीदवा न ली हो।
  6. गर्भावस्‍था तथा पूर्णावधि के प्रसव के पश्‍चात शिशु को दूध पिलाने की 6 माह की अवधि में किसी स्‍त्री से रक्‍तदान स्‍वीकार नहीं किया जाता है।
कितना रक्‍त लिया जाता है?
प्रतिदिन हमारे शरीर में पुराने रक्‍त का क्षय होता रहता है ओर प्रतिदिन नया रक्‍त बनता है रहता है।
एकबार में 350 मिलीलीटर यानि डेढ पाव रक्‍त ही लिया जाता है (कुल रक्‍त का 20 वॉं भाग)
शरीर 24 घंटों में दिये गये रक्‍त के तरल भाग की पूर्ति कर लेता है।
ब्‍लड बैंक रेफ्रिजरेटर में रक्‍त 4 - 5 सप्‍ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
क्‍या रक्‍तदान से दाता का कोई लाभ होता है?
हॉं। रक्‍तदान द्वारा किसी को नवजीवन देकर जो आत्मिक आनन्‍द मिलता है उसका न तो कोई मूल्‍य ऑंका जा सकता है न ही उसे शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया जा सकता है। चिकित्‍सकों का यह मानना है कि रक्‍तदान खून में कोलेस्‍ट्रॉल की अधिकता रक्‍त प्रवाह में बाधा डालती है। रक्‍त दान शरीर द्वारा रक्‍त बनाने की क्रिया को भी तीव्र कर देता है। रक्‍त के कणों का जीवन सिर्फ 90 से 120 दिन तक का होता है। प्रतिदिन हमारे शरीर में पुराने रक्‍त का क्षय होता रहता है और नया रक्‍त बनता जाता है इका हमें कोई अनुभव नहीं होता। बहुत से स्‍त्री-पुरूषों ने नियमित रूप से रक्‍त दान करने का क्रम बना रखा है। अतः आप भी नियमित रूप से स्‍वैच्छिक रक्‍तदान करें,  जिससे रक्‍त की हमेशा उपलब्‍धता बनी रहे कोई सुहागिन विधवा न बने,  वृद्व मॉ-बाप बेसहारा न हो, खिलता यौवन असमय ही काल कलवित न हो आज किसी को आपके रक्‍त की आवश्‍यकता है,  हो सकता है कल आपको किसी के रक्‍त की आवश्‍यकता हो अतः निडर होकर स्‍वैच्छिक रक्‍त दान करें।
रक्‍त दान कहॉं करें?
रक्‍तदान किसी भी लाईसेन्‍स युक्‍त ब्‍लड बैंक में किया जा सकता है। यह सुविधा सभी जिला-चिकित्‍सालयों में भी उपलब्‍ध है। राज्‍य के सरकारी 43 एवं निजी क्षेत्र में 18 ब्‍लड बैंक लाईसेन्‍स युक्‍त है। इसके अलावा मान्‍यता प्राइज़ एजेन्सियों जैसे रोटरी क्‍लब, लायंस क्‍लब आदि द्वारा समय-समय पर रक्‍तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है। इनमें से किसी भी अधिकृत सील पर आप स्‍वैच्‍छा से निश्चित होकर रक्‍तदान कर सकते हैं।
रक्‍त संचार से पहले जांच?
ब्‍लड बैंक में जारी करने से पहले रक्‍त की प्रत्‍येक इकाई का परीक्षण मलेरिया,  सिफलिस,  हिपेटाइटिस (सी) व एच.आई.वी. के लिए किया जाता है ताकि सुरक्षित रक्‍त ही मरीज को पहुंचे।
क्‍या रक्‍तदान कष्‍टकारक या हानिकारक होता है?
  1. रक्‍त देते समय कोई पीडा नहीं होती है।
  2. रक्‍तदान करने में 5 से 10 मिनट का समस लगता है।
  3. रक्‍त देन के पश्‍चात आप सभी कार्य सामान्‍य रूप से कर सकते हैं।
  4. रक्‍तदाता के सामान्‍य स्‍वास्‍थ्‍य प कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडता है।
स्‍वेच्‍छा से दिया गया रक्‍त, बेचने वाले के रक्‍त से अच्‍छा होता है क्‍योंकि:-
स्‍वेच्‍छा से रक्‍त देने वाला मनुष्‍य,  मानव मात्र् की सहायता के लिये रक्‍त देता है, न की धन के लालच से इसलिए वह किसी प्रकार की वर्तमान या पुरानी बीमारी का बतानें में नहीं हिचकिचाता,  जिससे रक्‍त प्राइज़ करने वाले का जीवन खतरें में पड सकता है। रक्‍त बेचने वाला धन के लालच में अपने हर रोग को छिपाने का प्रयत्‍न करता है। जिससे रक्‍त प्राइज़ करने वाले को कई प्रकार की बीमारियां लग सकती है। ओर उसका जीवन भी खतरे में पड सकता है। पेशेवर रक्‍तदाता बिना अन्‍तराल के जल्‍दी-जल्‍दी रक्‍तदान करते हैं जिससे उनके रक्‍त में गुणवता का भी आभास हो जाता है।
रक्‍तदाता कार्ड:-
स्‍वेच्‍छा से रक्‍तदान करने वाले व्‍यक्ति को रक्‍तदान करने के तुरन्‍त बाद रक्‍तदाता ऋण पत्र / प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। जिससे वह रक्‍तदान की तिथि से 12 महिनें तक आवश्‍यकता पडने पर स्‍वंय या अपने परिवारजन के लिये ब्‍लड बैंक से एक यूनिट रक्‍त प्राइज़ कर सकता है अगर आपका या आपके सगे- संबन्धियों को खून चढाने की नौबत आये तो खून की बोतल या थैली पर 'एच.आई.वी. मुक्‍त'  की मोहर अवश्‍य देखें।
भारत में दान करने की प्रथा है,  धन व अन्‍न दान से भी अधिकतम महान रक्‍तदान है क्‍योंकि यह जीवनदान करता है। आओं हम सभी रक्‍त दान-जीवनदान करें।

देशद्रोहियों की काली कमाई कितनी है ,,,,,,,,,

वाशिंगटन. आठ साल में भारत से 125 अरब डॉलर (करीब 58 खरब रुपए ) की ‘काली कमाई’ विदेशों में पहुंचा दी गई। वाशिंगटन स्थित एक संगठन ने अध्ययन के बाद यह आंकड़े जारी किए हैं। 2000 से 2008 की अवधि में भारत से बाहर भेजी गई इस राशि के बारे में विस्तृत रिपोर्ट इस वर्ष के अंत में जारी की जाएगी।
‘ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी’ नामक संगठन के अर्थशास्त्री कार्ले कर्सियो ने संगठन की वेबसाइट पर अपने ब्लॉग में इसका खुलासा किया है। उन्होंने लिखा है कि भारत में भ्रष्टाचार और अंडरग्राउंड अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। लिहाजा, अवैध धन का देश से प्रवाह भी तेजी से बढ़ रहा है।
गरीब ही रहे गरीब : कर्सियो ने यह लिखा है कि 2004 से 2009 के बीच भारत की आर्थिक विकास दर औसतन आठ फीसदी से ज्यादा रही, लेकिन गरीबों को इसका ज्यादा लाभ नहीं मिला। गरीबों की मदद के लिए खर्च की जाने वाली रकम को राजनेता और अफसर डकार गए। इसमें कापरेरेट अफसर भी शामिल हैं। नतीजा यह हुआ कि गरीब पहले की तरह गरीब ही रहे।आय की असमानता बढ़ी : भारत में 2000-2005 की अवधि में आय की असमानता बढ़ गई। शून्य से एक के पैमाने पर 2000 में यह आंकड़ा जहां 0.32 था, वहीं 2005 में यह बढ़ कर 0.37 हो गया। एक को सबसे ज्यादा आय असमानता वाला आंकड़ा माना जाता है।
अजीब संयोग : कर्सियो का कहना है कि अर्थव्यवस्था के विकास और अवैध धन के निकास के बीच परस्पर संबंध है। इसकी वजह यह है कि जब तंत्र में ज्यादा धन होता है तो उसे चुराने के मौके भी ज्यादा होते हैं। ऐसे में राजनेताओं और अफसरों का लालच बढ़ता जाता है।
आखिर समस्या क्या?
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार सूचकांक (2009) में भारत 84 वें स्थान पर रहा था। कर्सियो का मत है कि देश में आज भी भ्रष्ट लोगों पर नजर रखने और उन पर मुकदमा चलाने के स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान विकसित नहीं हो पाए हैं। इसका नतीजा यह होगा कि आर्थिक विकास का लाभ जरूरतमंदों तक शायद कभी नहीं पहुंच पाएगा।

एक यद् कारगिल के नाम

२६ जनवरी पर खास ,,,1। (कारगिल मे हुए शहीदो के नाम एक पैगाम) मै उन को नमन: करता हू जिन्होने भारत माता के लिये अपने प्राणो की आहूती दे दी थी। आज ऊसी पर कुछ विचार आप के सामने रख रहा हू।। कारगिल की लडाई का ध्यान आते ही आज भी रोगटे खडे हो जाते है। इतनी भयानक लडाई शायद ही हिन्दुस्तान ने कभी लडी होगी। मुझे आज तक याद है कि सारा भारत उस समय किस तरह एक हो गया था तन मन से लोग देश की सेवा करने को व्याकुल होगये थे। जब किसी शहीद का शरीर तिरन्गे मे लिपट कर आता तो लोग उस के दर्शन करने के लिये पागल होजाते थे। परन्तू भारात सरकार की भूमिका इस युध मे निन्दनीय रही है सरकार ने पैसे, पेट्रोल पम्प, जमीने दे कर अपना पीछा छुडा लिया। परन्तू जितना पैसा सारकार का खर्च हुआ उससे करीब तीन गुणा इस देश की जानता ने सरकार को चन्दा करके देदिया था। अब प्रणाम उन वीरान्गनाओ को, जिन्होने अपना सुहाग इस देश के लिये मिटा दिया, उन माताओ और पिताओ को जिन्मे से तो कईयो ने तो अपने इकलोती औलाद इस देश पर मिटा दी। अब उनकी स्थितीयो पर गौर करे तो उन मे से बीस प्रतिशत भी सुखी नही है जो पढी लिखी थी उन्होने तो उन सुविधाओ का सही सदुपयोग करके अपने परीवार का पालन पोशन ठीक प्रकार से शुरू कर दिया पर जो अनपड और कम पढी लिखी है उनका हाल सबसे बुरा हो रहा है उनमे से कई तो जबरन देवर के बैठा दी गयी और कितनियो को उनके पीहर वाले बेवकूफ बना कर अपने साथ ले गये और उनका पैसा हडप लिया और वे घर की रही ने घाट कीकिसी भी शहीद की मूरती बनती है से ले कर जब तक उसका उद्घाटन होता है तब तक सारा खर्च शहीद के फ्न्ड मे से कटता है एक महीला ने अपने घर मे एक मन्दिर बनवा कर उसमे अपने पती की छोटी सी तस्वीर लगवा कर उस मन्दिर की पूजा करनी शुरू कर दी तो इस बात पर कफी हन्गामा होगया और उसे मजबूर किया गया कि वो किसी नेता के द्वारा उसका उद्घाटन करवाये।करगिल युद्ध जाटो के लिये एक अभिशाप के रूप मे आया था। अभिशाप तो वह पूरे देश के लिये ही था परन्तु उस युद्ध मे जितना नुक्सान जाटो का हूआ था उतना शायद ही किसी और कोम का हूआ हो। युद्ध के प्रारम्भ मे ही जाट बटालियन के सात जवानो का धोखे से अपहरण करलिया गया और इतना ही नही उनके शवो को भी बुरी तरह से बेइज्ज्त कर के हमे सोपा गया था। उस के बाद शुरू हुई एक बेहद खतरनाख लडाई उसमे कितने जाट नौजवान इस देश के लिये शहीद हुए इसका सही हिसाब किसी के पास भी नही है। सत्राह जाट ने तो इस लडाई मे मुख्य भूमिका निभाकर कर इस देश का मान बढाया था। इसी युद्ध मे सीकर जिले (राज।) के एक जवान ने शूरवीरता दिखाते हुए एक पूरी चौटी पर अकेले ने कब्जा किया था। बडे शर्म की बात है की इतना सब होते हुए भी जाटो को एक भी परमवीर चक्र नही मिला।पर यही सोच कर तसल्ली हो जाती है कि शदाहत किसी भी ईनाम की भूखी नही होती है।

दिल के कुछ अरमान ...........

  • तुमको तो भूल जायेंगे मगर तुम्हारी यादें कैसे भूल आएंगे ,
  • जब भी होगी पहली बारिश तुमको सामने पाएंगे ,
  • वोह बूंदों से भरा चेहरा तुम्हारा हम कई से देख पाएंगे ,
  • बहेगी जब भी सर्द हवाएं हम खुद को तनहा पाएंगे,
  • एहसास तुम्हारे साथ का हम का इसे महसूस कर पाएंगे,
  • इस दौड़ती हुई ज़िन्दगी में तो हम बिलकुल ही रुक ही
  • थाम लो हमे थमने से पहले हम कैसे यूँ जी पाएंगे,
  • ले डूबेगा ये दर्द हमे और हम जीते जी मर जायेंगे
  • क्या इश्क की हस्ती है, क्यूँ आँखें बरसती है ...
  • ये शाम भी तुमसे ही, मिलने को तरसती है...
  • अब टूट चुके मेरे, अरमां वो मोहब्बत के,॥
  • उम्मीद न महफ़िल से, तन्हाई भी डसती है ,...
  • टकरा के निकल जाते, हम दर्द की राहों से ...
  • पर बीच मे आती क्यूँ, यादों की वो बस्ती है ...
  • वो बात ही करते है, बस चाँद सितारों की॥
  • इस इश्क के सौदे मे, ये जान भी सस्ती है,॥
  • हासिल थे 'सिफ़र' हमको, अपनों से मिले रिश्ते,...
  • साहिल पे जो अब डूबी, वो प्यार की कश्ती है ...
  • वादे तो किये थे हम, अब साथ सदा होंगे॥
  • किस्मत भी कहानी है, हर मोड़ पे फंसती है...

आज के राजनेता

आज देश के राजनेता क्या कर रहे है , देश की सेवा कर रहे है या देश से सेवा करवा रहे है देश की जनता जहां भूखी मर रही है वहीँ भारतीय खाध्य निगम की गोदामों में लाखो टन बेकार हो रहा है कोमनवेल्थ खेलो के नाम पर जनता की कमाई का अरबो रुपये का घोटाला किया जा रहा है मैदान बनने से पहले ही टूट रहे है कोमनवेल्थ खेलो के ली गयी बसों का भी ये ही हाल है अक बस ६० लाख की है और भी मानक पुरे नहीं करती , सब की सब बेकार है आग लगती रहती है तो क्या देश की जनता ये सब देख नहीं रही है जनता कब तक ये सब देखती रहेगी कोमनवेल्थ खेलो का दो महीने का टाइम बाकि है और दिल्ली में अपराध इतना ज्यादा हो रहा है की आम आदमी डर रहा है भारत की इज्जत तो लुटने वाली है आज महंगाई इतनी ज्यादा है की आपको उसकी बात बताने की जरुरत ही नहीं है और करषी मंत्री साहब ये कह रहे है की महंगाई नहीं है ये तो सब मिडिया वालो का परचार है लेकिन मंत्री जी को क्या मालूम की चीनी दाल क्या भाव है आज के राजनेता

क्या हम आजाद है

राम राम सा भाइयो और बहनों देश को आजाद ६३ साल हो गए, लेकिन क्या हम आजाद है , आजकल तो ये लग रहा है धीरे धीरे हम गुलाम होते जा रहे है आज के राजनेता, पुलिसअधिकारी ,डोक्टर , इंजीनियर , सब घुस खोर होते जा रहे है अक तरफ गरीब मरीज इलाज के लिए मर जाता है डोक्टर पैसा की मांग करता रहता है गरीब पैसा नहीं दे पाता है , मर जाता है । कहने को सरकारी अस्पताल है ,लेकिन वहाँ तो इलाज करवाना तो दूर रुकना भी मुस्किल हो जाता है , गंदगी इतनी होती है अब देखो अजमेर सरकारी डेयरी का एक मनेजर के पास सात करोर की सम्पति मिली है और पता नहीं दुसरो के नाम कितनी है , वो पैसा किसका है ,आम जनता का ही है ,लेकिन जनता क्या करे आज तक किसी भी ऐसे नेता को सजा नहीं मिली ,झारखंड का पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोरा के पास तो हजारो करोरो के सम्पति है लेकिन उसका क्या हुआ कुछ नहीं ,सब के सब बेईमान है महगाई की बात तो क्या बोलू आप सब भी परेसान है पर क्या कर सकते है आज भी भारतीय खाद्य निगम की गोदामों में लाखो टन गेंहू ख़राब हो रहा है लेकिन अपना क्रषि मंत्री तो बोल रहा है ये मिडिया का खेल है अनाज सब ठीक है लेकिन जनता अंधी तो नहीं है सब देख रही है भारतीय खाद्य निगम अपने गोदाम पेप्सी को किराये पर दे रहा है और गरीब जनता का गेंहू खुले आसमान के निचे खराब हो रहा है , लेकिन कब तक .........कब तक हम बर्दास्त करेंगे कोमनवेल्थ खेलो के नाम क्या हो रहा है , एक तरफ देश की जनता भूखी मर रही है वही करोरो रुपये बेकार किये जा रहे है इतने पैसे से कोए कारखाना बनाते तो देश के कितने युवको को रोजगार मिलता ,लेकिन नेता लोंगो तो पैसा खाने का कोए भी बहाना मिलना चाहिए ,और गरीबो का खून चूसते रहते है , फिर बोलते है नक्सली मोअवादी देश द्रोही है ,आदमी भूख मरता क्या नहीं करता ,धीरे धीरे मरना से तो ठीक है एक दिन ही मर जाये ,जिन्दगी सब को प्यारी होती है कोए बिना मोंत कोए नहीं मरना नहीं चाहता , मज़बूरी में हथिहार उठाना परता है , ये सब देखने और समझने से तो ये लग रहा है की हम फिर गुलाम होते जा रहे है एक बार फिर जरुरत है उन वीरो की जिसने देश को आजाद करवाया था हमें इंतजार है आपकी राय का