Saturday, August 24, 2013

एक यद् कारगिल के नाम

२६ जनवरी पर खास ,,,1। (कारगिल मे हुए शहीदो के नाम एक पैगाम) मै उन को नमन: करता हू जिन्होने भारत माता के लिये अपने प्राणो की आहूती दे दी थी। आज ऊसी पर कुछ विचार आप के सामने रख रहा हू।। कारगिल की लडाई का ध्यान आते ही आज भी रोगटे खडे हो जाते है। इतनी भयानक लडाई शायद ही हिन्दुस्तान ने कभी लडी होगी। मुझे आज तक याद है कि सारा भारत उस समय किस तरह एक हो गया था तन मन से लोग देश की सेवा करने को व्याकुल होगये थे। जब किसी शहीद का शरीर तिरन्गे मे लिपट कर आता तो लोग उस के दर्शन करने के लिये पागल होजाते थे। परन्तू भारात सरकार की भूमिका इस युध मे निन्दनीय रही है सरकार ने पैसे, पेट्रोल पम्प, जमीने दे कर अपना पीछा छुडा लिया। परन्तू जितना पैसा सारकार का खर्च हुआ उससे करीब तीन गुणा इस देश की जानता ने सरकार को चन्दा करके देदिया था। अब प्रणाम उन वीरान्गनाओ को, जिन्होने अपना सुहाग इस देश के लिये मिटा दिया, उन माताओ और पिताओ को जिन्मे से तो कईयो ने तो अपने इकलोती औलाद इस देश पर मिटा दी। अब उनकी स्थितीयो पर गौर करे तो उन मे से बीस प्रतिशत भी सुखी नही है जो पढी लिखी थी उन्होने तो उन सुविधाओ का सही सदुपयोग करके अपने परीवार का पालन पोशन ठीक प्रकार से शुरू कर दिया पर जो अनपड और कम पढी लिखी है उनका हाल सबसे बुरा हो रहा है उनमे से कई तो जबरन देवर के बैठा दी गयी और कितनियो को उनके पीहर वाले बेवकूफ बना कर अपने साथ ले गये और उनका पैसा हडप लिया और वे घर की रही ने घाट कीकिसी भी शहीद की मूरती बनती है से ले कर जब तक उसका उद्घाटन होता है तब तक सारा खर्च शहीद के फ्न्ड मे से कटता है एक महीला ने अपने घर मे एक मन्दिर बनवा कर उसमे अपने पती की छोटी सी तस्वीर लगवा कर उस मन्दिर की पूजा करनी शुरू कर दी तो इस बात पर कफी हन्गामा होगया और उसे मजबूर किया गया कि वो किसी नेता के द्वारा उसका उद्घाटन करवाये।करगिल युद्ध जाटो के लिये एक अभिशाप के रूप मे आया था। अभिशाप तो वह पूरे देश के लिये ही था परन्तु उस युद्ध मे जितना नुक्सान जाटो का हूआ था उतना शायद ही किसी और कोम का हूआ हो। युद्ध के प्रारम्भ मे ही जाट बटालियन के सात जवानो का धोखे से अपहरण करलिया गया और इतना ही नही उनके शवो को भी बुरी तरह से बेइज्ज्त कर के हमे सोपा गया था। उस के बाद शुरू हुई एक बेहद खतरनाख लडाई उसमे कितने जाट नौजवान इस देश के लिये शहीद हुए इसका सही हिसाब किसी के पास भी नही है। सत्राह जाट ने तो इस लडाई मे मुख्य भूमिका निभाकर कर इस देश का मान बढाया था। इसी युद्ध मे सीकर जिले (राज।) के एक जवान ने शूरवीरता दिखाते हुए एक पूरी चौटी पर अकेले ने कब्जा किया था। बडे शर्म की बात है की इतना सब होते हुए भी जाटो को एक भी परमवीर चक्र नही मिला।पर यही सोच कर तसल्ली हो जाती है कि शदाहत किसी भी ईनाम की भूखी नही होती है।

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