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न जाने किस गली में ...तू खड़ी है ...एक सुबह बन कर... न जाने किस मोड़ पर ...इंतज़ार खड़ी है ...
एक शाम बन कर ...
न जाने किस आसमां में...
चाँद खिला है ...
एक ज़िंदगी बन कर ...
न जाने किस शहर में...
हम भटके हुए हैं ...
एक मुसाफिर बन कर ...
दिल टूट जाता है पर खनक नही होती
हर धडकन रोती है पर पलक नही रोती
मोहबत नाम है खुदा की बंदगी का
जो शरतो मे मिले वो मोहबत नही होती.
जद याद आवै ढोला थारी मीठी मीठी बतियानींद कोनी आवै जी कैसै कटे रतियाजद याद आवै ढोला थारी मीठी मीठी बतियाहिवडो रोवै म्हारो छलक जावै म्हारी अँखिया ....