Saturday, April 11, 2015

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इंतजार कर रही अंखिया देखण ऐसो नजारो
झीम-झीम पडे फुहार ठंडो चालै बायरो
कोनी सही जायै गर्मी सुरज देवता
बरस जावो ईन्दर् देवता सुन ल्यो हेलो म्हारो.......

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छाछ-राबड़ी, कांदो-रोटी, ई धरती को खाज।
झोटा देवै नीम हवा का, तीजण कर री नाज।।
पकी निमोली लुल झाला दे, नीम चढ़डी इठलावै।
मन चालै मोट्यारां का, जद टाबर गिटकू खावै।।
लूआ चालै भदै काकड़ी, सांगर निपजै जांटी।
कैर-फोगलो बिकै बजारां, वाह मरुधरा री माटी
रांभै गाय तुड़ावै बाछो, छतरी ताणै मोर।
गुट्टर-गूं कर चुगै कबूतर, बिखरै दाणा भोर।।
झग्गर झोटा दे' र धिराणी, बेल्यां दही बिलोवै।
फोई खातर टाबर-टोली काड हथेली जोवै।।
टीबां ऊपर लोट-पलेटा, अंग सुहावै माटी।
ल्हूर घालरी कामण गार्यां, वाह मरुधरा री माटी ।
रोही को राजा रोहीड़ो, चटकीलै रंग फूल।
मस्तक करै मींझर की सोरम, लुलै नीमड़ा झूल।।
गुड़-गुड़ करतो हुक्को घूमै, घणी सुहाणी रातां।
सीधा सादा लोग मुलकता, भोली भोली बातां।।
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Sunday, April 5, 2015

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सुबह शाम मंदिर में जाऊ पिवजी जोडू दोनूं हाथ
सुन ले सांवरिया अर्ज मेरी करवा दे म्हारो मिलाप
झुर झुर रोऊँ पियाजी जद याद आवै थारो साथ
नैणा बरसे नीर 'बुलिया' हिवड़ो करे विलाप
दिन तो कट जावै पिवजी पण तड़फु सारी रात
ना जाणे कद आवसी "बुलिया"खुशियां वाली रात
मिल बैठ बतलास्या अपने मनड़े री बात