Friday, August 30, 2013

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने —

दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !

चार युग - सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग !

चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !

चर वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !
चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !

पञ्च गव्य - गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र एवं गोबर, !
पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !
पंच तत्त्व - प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश !

छह दर्शन - वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा एवं उत्तर मिसांसा !

सप्त ऋषि - विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप !
सप्त पूरी - अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पूरी !

आठ योग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम , प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधी !

आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग , एवं योग लक्ष्मी !

नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री !

दस दिशाएं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय,आकाश एवं पाताल !

मुख्या दस अवतार - मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, बामन, परशुराम, श्री राम, कृष्ण, बलराम एवं कल्कि !

ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र पाशुपत, आग्नेय अस्त्र, पर्जन्य अस्त्र, पन्नग अस्त्र या सर्प अस्त्र,गरुड़ अस्त्र, शक्ति अस्त्र, फरसा, गदा एवं चक्र l

ग्यारह कौमार ऋषि - सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार, मरीचि, अत्री, अंगीरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य एवं वशिष्ठ l

बारह मास - चेत्र, वैशाख, ज्येष्ठ,अषाड़, श्रावन, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष. पौष, माघ एवं फागुन !

बारह राशी - मेष, ब्रषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, ब्रश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, कन्या एवं मीन !

बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर !

बारह विश्व की प्रारम्भिक जातियां - देवऋषि, देवता, गन्धर्व, किन्नर, रूद्र, खस, नाग, गरुड व अरुण, दानव, दैत्य, असुर एवं वसु l

चौदह मनु - स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, अर्क सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, रौच्य एवं भौत्य।

पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावश्या !

स्म्रतियां - मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ !

Chand Chadyo Gignaar - Rajasthani Songs

Chand Chadyo Gignaar - Rajasthani Songs

Sunday, August 25, 2013

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Rajasthani Song - Naag Lapeta Leve - Chetak Video

Brand new rajasthani song naag lapeta leve by chetak cassettes Rajasthan is culturally rich and has artistic and cultural traditions which reflect the ancient Indian way of life. There is rich and varied folk culture from villages which is often depicted and is symbolic of the state. Highly cultivated classical music and dance with its own distinct style is part of the cultural tradition of Rajasthan. The music is uncomplicated and songs depict day-to-day relationships and chores, more often focused around fetching water from wells or ponds.
Rajasthan has a diverse collection of musician castes, including langas, sapera, bhopa, jogi and Manganiar. There are two traditional classes of musicians: the Langas, who stuck mostly exclusively to Muslim audiences and styles, and the Manganiars, who had a more liberal approach.
Traditional music includes the women's Panihari songs, which lyrically describes chores, especially centered around water and wells, both of which are an integral part of Rajasthan's desert culture. Other songs, played by various castes, normally begin with the alap, which sets the tune and is followed by a recital of a couplet (dooba). Epic ballads tell of heroes like Devnarayan Bhagwan, Gogaji, Ramdeoji, Pabuji and Tejaji. The celebration of changing seasons is also very central to folk music of Rajasthan. Celebration of the coming of the Monsoons or the harvest season are central to most traditional folk songs. Songs also revolve around daily activities of the local people for instance a song about not sowing Jeera (Cummin) as it is difficult to tend. Or for instance another song about Podina (Mint) and how it is liked by various members of the family (an allegorical reference to a local liquor extracted from mint is also made). Every day common themes are the center of traditional rajasthani folk music. Famous Rajasthani Singers: munni lal dangi,
charanjit ahuja, babu singh, Kohinoor Langa, dayal pawar, Om Vyas, Alka Yagnik, Ram Laxman, Samir Date, Ikram Rajasthani
Rehana Mirza, chandra shekhar kalla, k pannalal, Raj Prabha, Rita Dasaut, Tanu Ranka, Shobha Purohit, o p vyas,
Mahendra Kapoor, Pathan Khan, Asha Bhonsle, Anuradha Prakash, Radha Maheshwari, Manzoor Khan Langa, Renu Ranka, Badruddin
Tilak Raaj, Dilraj Kaur, Mohan Singh, Aruna Sharma, Allah Jilai Bai Bikaner, Parveen Mirza, Brij Bhushan Kabra,
raj ki puran nath supera, Sanjo Baghel, Shana P, Ila Arun, Pt Pratap Narayan, Kanchan Spera, jaspal mohini nd many more......

Lal Tamater Tere Titer Pe Dil Aa Gaya Laal Tamater Ka Shakuntla Rao Hot Rajasthani Songs

Rajasthan is culturally rich and has artistic and cultural traditions which reflect the ancient Indian way of life. There is rich and varied folk culture from villages which is often depicted and is symbolic of the state. Highly cultivated classical music and dance with its own distinct style is part of the cultural tradition of Rajasthan. The music is uncomplicated and songs depict day-to-day relationships and chores, more often focused around fetching water from wells or ponds.
Rajasthan has a diverse collection of musician castes, including langas, sapera, bhopa, jogi and Manganiar. There are two traditional classes of musicians: the Langas, who stuck mostly exclusively to Muslim audiences and styles, and the Manganiars, who had a more liberal approach.
Traditional music includes the women's Panihari songs, which lyrically describes chores, especially centered around water and wells, both of which are an integral part of Rajasthan's desert culture. Other songs, played by various castes, normally begin with the alap, which sets the tune and is followed by a recital of a couplet (dooba). Epic ballads tell of heroes like Devnarayan Bhagwan, Gogaji, Ramdeoji, Pabuji and Tejaji. The celebration of changing seasons is also very central to folk music of Rajasthan. Celebration of the coming of the Monsoons or the harvest season are central to most traditional folk songs. Songs also revolve around daily activities of the local people for instance a song about not sowing Jeera (Cummin) as it is difficult to tend. Or for instance another song about Podina (Mint) and how it is liked by various members of the family (an allegorical reference to a local liquor extracted from mint is also made). Every day common themes are the center of traditional rajasthani folk music. Famous Rajasthani Singers: munni lal dangi,
charanjit ahuja, babu singh, Kohinoor Langa, dayal pawar, Om Vyas, Alka Yagnik, Ram Laxman, Samir Date, Ikram Rajasthani
Rehana Mirza, chandra shekhar kalla, k pannalal, Raj Prabha, Rita Dasaut, Tanu Ranka, Shobha Purohit, o p vyas,
Mahendra Kapoor, Pathan Khan, Asha Bhonsle, Anuradha Prakash, Radha Maheshwari, Manzoor Khan Langa, Renu Ranka, Badruddin
Tilak Raaj, Dilraj Kaur, Mohan Singh, Aruna Sharma, Allah Jilai Bai Bikaner, Parveen Mirza, Brij Bhushan Kabra,
raj ki puran nath supera, Sanjo Baghel, Shana P, Ila Arun, Pt Pratap Narayan, Kanchan Spera, jaspal mohini nd many more......

Saturday, August 24, 2013

मेरी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है

मेरी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है
करता हूँ प्यार बहुत में उनसे पर उन्हें शक आज भी है
मेरी जिन्दगी में आने का वादा किया था उसने नहीं आये वो
पर मेरी जिन्दगी को उनका इंतजार आज भी है
पहन कर वो पायल चलती थी वो इस कदर
उनकी पायल की वो छनक मेरे कानो में आज भी है
कुछ सपने कुछ आरजू थी मेरी
माँ की आँखों में उन पथराई हुई आँखों को में उम्मीद की एक किरण आज भी है
दिल तो मेरा बहुत करता है रोने को पर डरता हूँ कहीं
आंसुओ में ना धुल जाये उनकी वो तस्वीर जो मेरी आँखों में आज भी है
वो चली गई मुझे कुछ शिकवा तो उनसे आज भी है
कुछ भी कहो यारो मेरे दिल में आज भी उसका ही राज है
sanjay kumar meel

रक्‍तदान


रक्‍तदान
खून चढाने की जरूरत:-
जीवन बचाने के लिए खून चढाने की जरूरत पडती है। दुर्घटना,  रक्‍तस्‍त्राव,  प्रसवकाल और ऑपरेशन आदि अवसरों में शामिल है,  जिनके कारण अत्‍यधिक खून बह सकता है और इस अवसर पर उन लोगों को खून की आवश्‍यकता पडती है। थेलेसिमिया,  ल्‍यूकिमिया,  हीमोफिलिया जैसे अनेंक रोगों से पीडित व्‍यक्तियों के शरीर को भी बार-बार रक्‍त की आवश्‍यकता रहती है अन्‍यथा उनका जीवन खतरे में रहता है। जिसके कारण उनको खून चढाना अनिवार्य हो जाता है।
रक्‍तदान की आवश्‍यकता:-
इस जीवनदायी रक्‍त को एकत्रित करने का एकमात्र् उपाय है रक्‍तदान। स्‍वस्‍थ लोगों द्वारा किये गये रक्‍तदान का उपयोग जरूरतमंद लोगों को खून चढानें के लिये किया जाता है। अनेक कारणों से जैसे उन्‍नत सर्जरी के बढतें मामलों तथा फैलती जा रही जनसंख्‍या में बढती जा रही बीमारियों आदि से खून चढाने की जरूरत में कई गुना वृद्वि हुई है। लेकिन रक्‍तदाताओं की कमी वैसी ही बनी हुई है। लोगों की यह धारणा है कि रक्‍तदान से कमजोरी व नपूसंकता आती है, पूरी तरह बेबूनियाद है।  आजकल चिकित्‍सा क्षेत्र में कॅम्‍पोनेन्‍ट थैरेपी विकसित हो रही है,  इसके अन्‍तर्गत रक्‍त की इकाई से रक्‍त के विभिन्‍न घटकों को पृथक कर जिस रोगी को जिस रक्‍त की आवश्‍यकता है दिया जा सकता है इस प्रकार रक्‍त की एक इकाई कई मरीजों के उयोग में आ सकती है।
रक्‍त कौन दे सकता है?
ऐसा प्रत्‍येक पुरूष अथवा महिला:-
  1. जिसकी आयु 18 से 65 वर्ष के बीच हो।
  2. जिसका वजन (100 पौंड) 48 किलों से अधिक हो।
  3. जो क्षय रोग, रतिरोग, पीलिया, मलेरिया, मधुमेंह, एड्स आदि बीमारियों से पीडित नहीं हो।
  4. जिसने पिछले तीन माह से रक्‍तदान नहीं किया हो।
  5. रक्‍तदाता ने शराब अथवा कोई नशीलीदवा न ली हो।
  6. गर्भावस्‍था तथा पूर्णावधि के प्रसव के पश्‍चात शिशु को दूध पिलाने की 6 माह की अवधि में किसी स्‍त्री से रक्‍तदान स्‍वीकार नहीं किया जाता है।
कितना रक्‍त लिया जाता है?
प्रतिदिन हमारे शरीर में पुराने रक्‍त का क्षय होता रहता है ओर प्रतिदिन नया रक्‍त बनता है रहता है।
एकबार में 350 मिलीलीटर यानि डेढ पाव रक्‍त ही लिया जाता है (कुल रक्‍त का 20 वॉं भाग)
शरीर 24 घंटों में दिये गये रक्‍त के तरल भाग की पूर्ति कर लेता है।
ब्‍लड बैंक रेफ्रिजरेटर में रक्‍त 4 - 5 सप्‍ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
क्‍या रक्‍तदान से दाता का कोई लाभ होता है?
हॉं। रक्‍तदान द्वारा किसी को नवजीवन देकर जो आत्मिक आनन्‍द मिलता है उसका न तो कोई मूल्‍य ऑंका जा सकता है न ही उसे शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया जा सकता है। चिकित्‍सकों का यह मानना है कि रक्‍तदान खून में कोलेस्‍ट्रॉल की अधिकता रक्‍त प्रवाह में बाधा डालती है। रक्‍त दान शरीर द्वारा रक्‍त बनाने की क्रिया को भी तीव्र कर देता है। रक्‍त के कणों का जीवन सिर्फ 90 से 120 दिन तक का होता है। प्रतिदिन हमारे शरीर में पुराने रक्‍त का क्षय होता रहता है और नया रक्‍त बनता जाता है इका हमें कोई अनुभव नहीं होता। बहुत से स्‍त्री-पुरूषों ने नियमित रूप से रक्‍त दान करने का क्रम बना रखा है। अतः आप भी नियमित रूप से स्‍वैच्छिक रक्‍तदान करें,  जिससे रक्‍त की हमेशा उपलब्‍धता बनी रहे कोई सुहागिन विधवा न बने,  वृद्व मॉ-बाप बेसहारा न हो, खिलता यौवन असमय ही काल कलवित न हो आज किसी को आपके रक्‍त की आवश्‍यकता है,  हो सकता है कल आपको किसी के रक्‍त की आवश्‍यकता हो अतः निडर होकर स्‍वैच्छिक रक्‍त दान करें।
रक्‍त दान कहॉं करें?
रक्‍तदान किसी भी लाईसेन्‍स युक्‍त ब्‍लड बैंक में किया जा सकता है। यह सुविधा सभी जिला-चिकित्‍सालयों में भी उपलब्‍ध है। राज्‍य के सरकारी 43 एवं निजी क्षेत्र में 18 ब्‍लड बैंक लाईसेन्‍स युक्‍त है। इसके अलावा मान्‍यता प्राइज़ एजेन्सियों जैसे रोटरी क्‍लब, लायंस क्‍लब आदि द्वारा समय-समय पर रक्‍तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है। इनमें से किसी भी अधिकृत सील पर आप स्‍वैच्‍छा से निश्चित होकर रक्‍तदान कर सकते हैं।
रक्‍त संचार से पहले जांच?
ब्‍लड बैंक में जारी करने से पहले रक्‍त की प्रत्‍येक इकाई का परीक्षण मलेरिया,  सिफलिस,  हिपेटाइटिस (सी) व एच.आई.वी. के लिए किया जाता है ताकि सुरक्षित रक्‍त ही मरीज को पहुंचे।
क्‍या रक्‍तदान कष्‍टकारक या हानिकारक होता है?
  1. रक्‍त देते समय कोई पीडा नहीं होती है।
  2. रक्‍तदान करने में 5 से 10 मिनट का समस लगता है।
  3. रक्‍त देन के पश्‍चात आप सभी कार्य सामान्‍य रूप से कर सकते हैं।
  4. रक्‍तदाता के सामान्‍य स्‍वास्‍थ्‍य प कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडता है।
स्‍वेच्‍छा से दिया गया रक्‍त, बेचने वाले के रक्‍त से अच्‍छा होता है क्‍योंकि:-
स्‍वेच्‍छा से रक्‍त देने वाला मनुष्‍य,  मानव मात्र् की सहायता के लिये रक्‍त देता है, न की धन के लालच से इसलिए वह किसी प्रकार की वर्तमान या पुरानी बीमारी का बतानें में नहीं हिचकिचाता,  जिससे रक्‍त प्राइज़ करने वाले का जीवन खतरें में पड सकता है। रक्‍त बेचने वाला धन के लालच में अपने हर रोग को छिपाने का प्रयत्‍न करता है। जिससे रक्‍त प्राइज़ करने वाले को कई प्रकार की बीमारियां लग सकती है। ओर उसका जीवन भी खतरे में पड सकता है। पेशेवर रक्‍तदाता बिना अन्‍तराल के जल्‍दी-जल्‍दी रक्‍तदान करते हैं जिससे उनके रक्‍त में गुणवता का भी आभास हो जाता है।
रक्‍तदाता कार्ड:-
स्‍वेच्‍छा से रक्‍तदान करने वाले व्‍यक्ति को रक्‍तदान करने के तुरन्‍त बाद रक्‍तदाता ऋण पत्र / प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। जिससे वह रक्‍तदान की तिथि से 12 महिनें तक आवश्‍यकता पडने पर स्‍वंय या अपने परिवारजन के लिये ब्‍लड बैंक से एक यूनिट रक्‍त प्राइज़ कर सकता है अगर आपका या आपके सगे- संबन्धियों को खून चढाने की नौबत आये तो खून की बोतल या थैली पर 'एच.आई.वी. मुक्‍त'  की मोहर अवश्‍य देखें।
भारत में दान करने की प्रथा है,  धन व अन्‍न दान से भी अधिकतम महान रक्‍तदान है क्‍योंकि यह जीवनदान करता है। आओं हम सभी रक्‍त दान-जीवनदान करें।